“गीता-शंकरभाष्य” (Gita-Shankara Bhashya) भगवद्गीता पर आदि शंकराचार्य द्वारा रचित भाष्य (टिप्पणी) है। आदि शंकराचार्य, जो 8वीं शताब्दी के महान भारतीय दार्शनिक और अद्वैत वेदांत के प्रणेता थे, ने भगवद्गीता के श्लोकों की व्याख्या अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों के आधार पर की। उनका भाष्य भगवद्गीता के ज्ञानमार्ग (ज्ञान योग), भक्ति मार्ग (भक्ति योग), और कर्म मार्ग (कर्म योग) की गहन व्याख्या प्रस्तुत करता है।
मुख्य बिंदु:
- अद्वैत वेदांत का सिद्धांत:
- शंकराचार्य ने भगवद्गीता की व्याख्या अद्वैत वेदांत के दृष्टिकोण से की है, जिसमें ब्रह्म (सर्वोच्च वास्तविकता) और आत्मा (व्यक्तिगत आत्मा) की एकता का प्रतिपादन किया गया है।
- उन्होंने यह बताया कि सभी जीवों का अंतिम लक्ष्य ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना और मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति करना है।
- ज्ञान योग:
- शंकराचार्य के अनुसार, आत्मज्ञान ही मुक्ति का मार्ग है। आत्मा और परमात्मा की एकता को जानना ही सच्चा ज्ञान है।
- उन्होंने भगवद्गीता के उन श्लोकों की व्याख्या की जो आत्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान की महत्ता पर बल देते हैं।
Reviews
Clear filtersThere are no reviews yet.