“नाड़ी विज्ञानम्” (Nadi Vijnanam) एक प्राचीन आयुर्वेदिक पद्धति है, जो शरीर में प्रवाहित होने वाली नाड़ियों (पल्स) के अध्ययन और उनके आधार पर रोगों के निदान पर केंद्रित है। यह पद्धति आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसमें नाड़ी की गति, स्वरूप, और गुणों का निरीक्षण कर शरीर की स्थिति और बीमारियों का पता लगाया जाता है।
नाड़ी विज्ञानम् के प्रमुख तत्व:
- नाड़ी की स्थिति:
- नाड़ी को तीन प्रमुख दोषों – वात, पित्त, और कफ के आधार पर समझा जाता है।
- नाड़ी की गति, ताकत, और धड़कन की आवृत्ति को ध्यान में रखकर रोग की पहचान की जाती है।
- नाड़ी के प्रकार:
- वात नाड़ी: यह नाड़ी पतली, हल्की और तेज होती है। यह सूखा, हल्का, ठंडा और परिवर्तनशील होता है।
- पित्त नाड़ी: यह नाड़ी तीव्र, गर्म और स्थिर होती है। यह तेज, गर्म, और तीक्ष्ण होती है।
- कफ नाड़ी: यह नाड़ी भारी, धीमी और स्थिर होती है। यह ठंडी, भारी और स्थिर होती है।






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