“सुखानंद वास्तु शास्त्र” डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू द्वारा लिखित एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जो प्राचीन भारतीय वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों और उनके आधुनिक अनुप्रयोगों पर केंद्रित है। यह पुस्तक वास्तुशास्त्र के गूढ़ ज्ञान को सरल और सुस्पष्ट भाषा में प्रस्तुत करती है, जिससे पाठक इसे आसानी से समझ सकें और अपने जीवन में लागू कर सकें।
“सुखानंद वास्तु शास्त्र” में निम्नलिखित प्रमुख विषयों पर प्रकाश डाला गया है:
- वास्तुशास्त्र के मूल सिद्धांत: प्राचीन भारतीय वास्तुशास्त्र के मूलभूत सिद्धांतों का विस्तार से विवरण। इसमें दिशाओं का महत्व, पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का संतुलन, और घर के विभिन्न हिस्सों की सही स्थिति का वर्णन किया गया है।
- भूमि और भवन चयन: सही भूमि का चयन, भूखंड का आकार, और उस पर भवन निर्माण के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश। इसमें भूमि परीक्षण, भूमि का झुकाव, और मिट्टी के प्रकार का महत्व भी शामिल है।
- निर्माण की विधियाँ: भवन निर्माण के विभिन्न चरणों का विवरण, जैसे नींव डालना, दीवारें बनाना, छत लगाना, और दरवाजे-खिड़कियों की स्थिति। इसमें वास्तु दोषों को दूर करने के उपाय और शुभ मुहूर्त का चयन भी शामिल है।
- आंतरिक सज्जा और फर्नीचर: घर के अंदरूनी हिस्सों की सजावट के लिए वास्तु के सिद्धांतों का पालन। इसमें फर्नीचर का स्थान, रंगों का चयन, और अन्य सजावटी तत्वों का महत्व बताया गया है।
- ऊर्जा प्रवाह और पर्यावरण: सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ाने के उपाय और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के तरीके। इसमें प्राकृतिक प्रकाश, हवा, और अन्य पर्यावरणीय कारकों का महत्व भी शामिल है।
- सांस्कृतिक और धार्मिक संदर्भ: भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भवन निर्माण और सजावट के नियम। इसमें पूजा स्थल, तुलसी चौरा, और अन्य धार्मिक स्थानों का वास्तु अनुसार निर्माण शामिल है।






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