“अष्टांगह्रदयम्” आचार्य वाग्भट द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक ग्रंथ है, और इसका संपादन व टिप्पणी डॉ. अत्रि देव गुप्ता द्वारा किया गया है। यह ग्रंथ आयुर्वेद के आठ अंगों (अष्टांग) पर केंद्रित है और इसे आयुर्वेदिक चिकित्सा के प्रमुख ग्रंथों में से एक माना जाता है।
पुस्तक का विवरण:
- ग्रंथ की संरचना: “अष्टांगह्रदयम्” में सूत्रस्थान, शारीरस्थान, निदानस्थान, चिकित्सा स्थान, कल्पस्थान और उत्तरस्थान जैसे छह प्रमुख भाग हैं। डॉ. अत्रि देव गुप्ता ने प्रत्येक भाग की सरल और सुबोध भाषा में व्याख्या की है, जिससे विद्यार्थी और चिकित्सक इसे आसानी से समझ सकते हैं।
- मूल संस्कृत श्लोकों की व्याख्या: इस पुस्तक में मूल संस्कृत श्लोकों को शामिल किया गया है और उनके हिंदी अनुवाद व व्याख्या को भी प्रस्तुत किया गया है। इससे पाठकों को श्लोकों के गहरे अर्थ और उनके चिकित्सकीय महत्व को समझने में मदद मिलती है।
- आयुर्वेदिक सिद्धांतों का विवरण: ग्रंथ में वात, पित्त, कफ, धातु, मल, अग्नि, ओजस, और प्राण के सिद्धांतों की विस्तृत व्याख्या की गई है। इसके साथ ही, विभिन्न रोगों के निदान और उपचार के सिद्धांतों को भी सरल भाषा में समझाया गया है।
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