श्रीदक्षिणामूर्तिसंहिता (Sri Dakshinamurti Samhita) श्री राधेश्यम चतुर्वेदी द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण धार्मिक और तांत्रिक ग्रंथ है, जो दक्षिणामूर्ति की पूजा, उनके तांत्रिक सिद्धांतों और उपासना विधियों पर आधारित है। दक्षिणामूर्ति, शिव का एक विशेष रूप है, जिन्हें गुरु और शिक्षण के देवता के रूप में पूजा जाता है।
ग्रंथ के मुख्य विषय:
- दक्षिणामूर्ति का परिचय:
- इस खंड में दक्षिणामूर्ति, जो शिव के एक विशेष रूप के रूप में पूजे जाते हैं, की उपासना और उनके धार्मिक महत्व का वर्णन है। दक्षिणामूर्ति को ज्ञान और शिक्षा के देवता के रूप में माना जाता है और वे तांत्रिक और वेदांत परंपराओं में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
- पूजा और अनुष्ठान:
- श्रीदक्षिणामूर्तिसंहिता में दक्षिणामूर्ति की पूजा और अनुष्ठानों की विधियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें पूजा की सामग्री, अनुष्ठानों की प्रक्रिया, और दक्षिणामूर्ति की उपासना के विशेष नियम शामिल हैं।
- मंत्र और यंत्र:
- ग्रंथ में दक्षिणामूर्ति की पूजा के लिए उपयोग किए जाने वाले मंत्रों और यंत्रों का विस्तार से विवरण है। इन मंत्रों और यंत्रों का सही उपयोग साधक को दक्षिणामूर्ति की कृपा प्राप्त करने और तांत्रिक सिद्धियाँ प्राप्त करने में सहायक होता है।
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