श्रीविद्यार्णवतन्त्रम् (Shri Vidyarnava Tantra) एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो तंत्र शास्त्र और श्रीविद्या की परंपरा पर आधारित है। इस ग्रंथ का संपादन और प्रकाशन कपिलदेव नारायण ने किया है, और यह 5 खंडों में उपलब्ध है। इस ग्रंथ का मुख्य उद्देश्य श्रीविद्या की साधना और उसके विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाना है।
श्रीविद्या तंत्र शास्त्र की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जिसमें देवी त्रिपुरसुंदरी की उपासना प्रमुख है। इस ग्रंथ में श्रीविद्या के विभिन्न मंत्र, तंत्र, यंत्र और उनकी साधना विधियों का वर्णन है। साथ ही, इसमें श्रीचक्र, जो कि श्रीविद्या का प्रमुख यंत्र है, का विस्तार से विवेचन किया गया है।
ग्रंथ के मुख्य विषय:
- श्रीविद्या और त्रिपुरसुंदरी: इसमें देवी त्रिपुरसुंदरी की महिमा, उनके विभिन्न रूपों और उनके साधना की महत्ता का वर्णन है।
- श्रीचक्र: श्रीचक्र के निर्माण, स्थापना और उसकी साधना के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है।
- मंत्र साधना: इसमें श्रीविद्या के विभिन्न मंत्रों का विवरण और उनकी साधना विधियों का वर्णन है।






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