समराङ्गणसूत्रधार (भाग-2: वास्तु शास्त्र)
लेखक: एस.के. जुगनू
पुस्तक विवरण (हिंदी में):
समराङ्गणसूत्रधार (भाग-2: वास्तु शास्त्र) एस.के. जुगनू द्वारा रचित इस ग्रंथ का दूसरा भाग है, जो भारतीय वास्तुकला और स्थापत्य कला के गहन अध्ययन पर केंद्रित है। यह पुस्तक प्राचीन भारत के वास्तु शास्त्र के उन पहलुओं को विस्तार से प्रस्तुत करती है, जिन्हें परमार वंश के राजा महाराजाधिराज भोज देव ने अपने मूल समराङ्गणसूत्रधार में उल्लेखित किया था।
इस भाग में एस.के. जुगनू ने प्राचीन भारतीय वास्तुकला के उन्नत तकनीकी ज्ञान को आधुनिक युग के संदर्भ में व्याख्यायित किया है। इस पुस्तक में भवन निर्माण के विशेष पहलुओं जैसे कि महलों, मंदिरों, और किलों के वास्तु के विस्तृत निर्देश दिए गए हैं। इसमें स्थापत्य कला के परिष्कृत रूपों, निर्माण सामग्री की गुणवत्ता, और निर्माण के समय अपनाए जाने वाले विभिन्न धार्मिक और ज्योतिषीय उपायों का भी विवरण दिया गया है।
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