“प्रौढमनोरमा (सशब्दरत्न)” डॉ. जयशंकरलाल त्रिपाठी द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण संस्कृत व्याकरण ग्रंथ है। यह ग्रंथ संस्कृत भाषा की जटिलताओं और उसके विविध पहलुओं को सरल और सुबोध भाषा में प्रस्तुत करता है।
डॉ. जयशंकरलाल त्रिपाठी एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान और भाषाविद थे। उन्होंने “प्रौढमनोरमा” के माध्यम से संस्कृत के व्याकरणिक सिद्धांतों और नियमों को विस्तारपूर्वक समझाया है। इस ग्रंथ में उन्होंने संस्कृत के विभिन्न शब्दों, उनकी उत्पत्ति, रूपांतरण और उपयोग को व्यापक रूप से वर्णित किया है। “प्रौढमनोरमा” संस्कृत व्याकरण के विद्यार्थियों और विद्वानों के लिए एक अनमोल धरोहर है।
इस ग्रंथ का मुख्य उद्देश्य संस्कृत व्याकरण को आसान और समझने योग्य बनाना है। डॉ. त्रिपाठी ने इसमें अनेक उदाहरणों और स्पष्ट व्याख्याओं के माध्यम से संस्कृत के कठिन व्याकरणिक नियमों को सहज बनाया है। “सशब्दरत्न” के रूप में इस ग्रंथ में शब्दों की उत्पत्ति और उनके विभिन्न रूपों का भी विशद वर्णन है।
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