गादाधरी (Gadadhari) 2 खंड – गदाधर भट्टाचार्य चक्रवर्ती द्वारा
गादाधरी एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो संस्कृत साहित्य और भारतीय दार्शनिक परंपरा में एक विशिष्ट स्थान रखता है। इसे प्रसिद्ध विद्वान गदाधर भट्टाचार्य चक्रवर्ती द्वारा रचित किया गया है। गादाधरी मुख्यतः तर्कशास्त्र (न्याय दर्शन) और मीमांसा दर्शन पर आधारित व्याख्यानों का संकलन है। यह ग्रंथ “तत्त्व चिन्तामणि” पर रघुनाथ शिरोमणि द्वारा रचित “दिधिति” पर एक विस्तृत टिप्पणी (टीका) के रूप में है【28†source】【31†source】।
ग्रंथ का मुख्य विषय:
गादाधरी तर्कशास्त्र के सिद्धांतों और अवधारणाओं की विस्तृत व्याख्या करता है, विशेष रूप से “व्याप्ति” और “अवच्छेदकत्व” जैसी जटिल तात्विक समस्याओं को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ग्रंथ न्याय दर्शन की वि (Chowkhamba Sanskrit Series) (ePustakalay)हराई से प्रकाश डालता है【30†source】।
प्रकाशन और संपादन:
गादाधरी का संपादन वामाचरण भट्टाचार्य और धुंडीराज शास्त्री द्वारा किया गया है और यह सबसे पहले 1925 में बनारस के चौखम्बा प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था। इस ग्रंथ के नवीनतम संस्करण को आज भी संस्कृत अध्ययन और भारतीय दर्शन में महत्वपूर्ण माना जाता है【29†source】।
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