आयुर्वेद में अर्शरोग (बवासीर) का इलाज महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह रोग पीड़ित व्यक्ति को बहुत असुविधा और कष्ट पहुंचाता है। अर्शरोग की आयुर्वेदिक चिकित्सा में विभिन्न विधियों और औषधियों का प्रयोग किया जाता है, जो रोग को जड़ से समाप्त करने में सहायक होते हैं।
अर्शरोग (बवासीर) क्या है?
अर्शरोग या बवासीर एक ऐसी अवस्था है जिसमें मलद्वार के भीतर या बाहर रक्तवहिनियाँ सूज जाती हैं। यह सूजन दर्द, खून बहना, और खुजली का कारण बन सकती है। बवासीर दो प्रकार की होती है: आंतरिक (इंटर्नल) और बाहरी (एक्सटर्नल)।
अर्शरोग के कारण:
- अनुचित आहार और जीवनशैली
- लंबे समय तक बैठे रहना
- कब्ज
- अत्यधिक वजन उठाना
- गर्भावस्था
- अनुवांशिक कारक
अर्शरोग की आयुर्वेदिक चिकित्सा:
- औषधियों का प्रयोग:
- त्रिफला: त्रिफला चूर्ण कब्ज दूर करने और मल त्याग को सरल बनाने में सहायक है।
- अरशोहर कुटी: यह औषधि बवासीर की सूजन और दर्द को कम करने में सहायक है।
- नागकेसर: रक्तस्राव को रोकने के लिए नागकेसर का प्रयोग किया जाता है।
- कुमारी (एलोवेरा): कुमारी रस आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार की बवासीर में लाभकारी है।
- पंचकर्म चिकित्सा:
- वास्ति: औषधीय एनिमा (वास्ति) का प्रयोग आंतरिक सफाई के लिए किया जाता है।
- क्षार सूत्र: एक विशिष्ट प्रकार का धागा (क्षार सूत्र) बवासीर की गांठ को काटने और सुखाने में प्रयोग किया जाता है।
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